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समरस समाज सक्षम राष्ट्र




समरस समाज सक्षम राष्ट्र----

भारत एक ऐसी पवन धरती है जहाँ अनेको ईश्वरीय अवधारणा के महापुरुषों या यूं कहें कि स्वय ईश्वर का प्रादुर्भाव अवतरण हुआ एव करुणा क्षमा, दया, सेवा, समर्पण के प्रति प्रतिबद्ध समाज का निर्माण किया सत्य सनातन धर्म के आस्था  विश्वास एव उसके आधार का गंभीरता पूर्वक अध्ययन किया जाय तो स्पष्ठ होता है कि वर्णित अवतारों में प्रथम अवतार मत्स्य द्वितीय अवतार कच्छप तृतीत बाराह चतुर्थ नरसिंह पांचवां वामन छठा परशुराम सातवां राम आठवें भगवान कृष्ण एव नौवेभगवान बुद्ध सभी अवतारों का एक निश्चित उद्देश था ब्रह्मांड के सभी प्राणियों को जीवन का यथार्त संम्मान सुरक्षा विकास का अवसर उपलब्ध हो ईश्वरीय सत्यार्थ के प्रकाश से समग्र ब्रह्मांड आलोकित हो एव प्राणि मात्र में प्रेम सद्भावन समरसता का समन्वय सामंजस्य हो एव द्वेष दंम्भ घृणा कपट छद्म छल प्रपंच रहित बृहद आस्था की संस्कृति सांस्कार का सर्व कल्याण कारी समाज का निर्माण हो।
 सनातन में ईश्वर प्राणि की प्रथम कल्पना अस्तित्व के ब्रह्मांड से अवतरित मत्स्य कच्छप है तो आवनी की स्वच्छता पर्यावरण संरक्षण का बाराह है तो नकारात्मक में सकारात्मक बोध के संसय का वामन है तो बाल भक्ति शक्ति और पिता पुत्र के रिश्तो की खोट का नारायण नरसिंह है अन्यायी अत्याचरारी शासकों का विनाश परशुराम है तो मर्यादा की महिमा संस्कृति का राम संमजिक रिश्तों में प्रेम सद्भाव के उत्क्रर्ष समर्पण का राम जो पिता आज्ञा से राज पाठ त्याग वन जाना स्वीकार करते है तो वनवास में उनका प्रथम मित्र निषादराज सबरी  वन प्राणि बानर भालू उनके मित्र सहायक बनते है स्पष्ठ है कि राम स्वय अवतार है जिन्होंने प्राणि मात्र में प्रेम करुणा सेवा भाव को देखा जाना और भगवान राम मार्याद के अवतरण अस्तित्व ब्रह्म ब्रमांड की प्राणि प्राण की प्रायोगिक परिभाषा का जीवंत जीवन मूल्य निर्धारित किया वही भरत लक्ष्मण शत्रुघ्न ने सामाजिक रिश्तों की मर्यादा प्रस्तुत किया जो निश्चय ही एक समरस सृष्टि समाज की अवधारणा का सत्य एव मार्गदर्शन है इसी प्रकार कृष्णावतार में जन्म दाता के कारगर में बंदी अवस्था मे जन्म लेना  अन्याय अत्याचार के भय से छुप छुप कर यशोदा के यहां बचपन एव गाय चराना  गोपियों ग्वाल के संग कोई जाति पाती का भेद भाव नही सम भाव से सबके साथ एक आचरण व्यवहार ईश्वरीय सृष्टि में  समरस समर्पित सद्भाव के समाज का बोध है सनातन धर्म के किसी अवतार में प्राणि मात्र में कही  भी ऊंच नीच भेद भाव को स्थान नही प्राप्त है सिर्फ सर्वहिताय सर्व सुखाय के बसुधैव कुटुम्बकम का सत्यार्थ का सर्व सिद्धान्त निरूपण है।
बुद्धा अवतार तो हिंसा के प्रतिकार के लिये ही था अहिंसा परमो धर्म भेद भाव रहित प्राणि समाज की वास्तविकताओं का ही यथार्त बुद्ध अवतार है ।सनातन धर्म मे जती प्रथा नाम की कभी कोई व्यवस्था नही थी वर्ण व्यवस्था कर्म के आधरित थी जो राज्य प्राणि की रक्षा करता राजा जो शिक्षा संस्कर का कार्य करता गुरु जो व्यपार करता वैश्य जो अन्य कार्य करता शुद्र धीरे धीरे सनातन समाज की अवधारणा के नैतिकता में झरण होने लगा और जाति प्रथा ने जन्म लिया जो धीरे धीरे बाटता गया और सनातन संस्कृति सिकुड़ने लगी सनातन धर्म की इसी खूबसूरती को अन्य धर्म पर्वतको ने अपने मूल सिद्धांत बनाये जिसके कारण ।सनातन संस्कृति में सभी स्थान सांस्कार कर्म में सभी को समम्मानित स्थान प्राप्त था जो किसी आदर्श समाज के लिये आवश्यक है चाहे शुभ कर्म हो या अशुभ कर्म गुरुकुल के गुरु से शुद्र तक को समान सम्मान एव अवसर उपलब्ध था जो आज भी अन्य संस्कृति धर्म मे आज प्रासंगिक एव अभिमान है।भौतिवादी समाज मे भी यही सच्चाई आज सर्वत्र परिलक्षित है मगर जाती बोध के भाव एक दूसरे के मध्य दूरियां बनाते है।शिक्षकगुरुकुल बनाकर वन में रहता था तो जन जातियां उसके समाज की अहम हिस्सा थी सनातन में क्रूरता का स्थान नही है इसीलिए भारत के किसी भी शक्तिशाली राजा द्वारा कही भी आक्रमण कर राज्य विस्तार करने का कोई साक्ष्य नही है ।सनातन संस्कृति का विखंडन जाती सम्प्रदाय में बटने के कारण सिमटता जा रहा है जिसके कारण इस समाज पर ही खतरा मंडरा रहा है अतः बृहद राष्ट्रबाद के लिये आवश्यक है कि संकुचित दायरों को तोड़ते हुये एकात्म राष्ट्र के लिये एकात्म हिन्दू समाज का सशक्त होना आवश्यक है जिसका मूल आधार समतामूलक समरस समाज सिर्फ यही संकल्प भारत को सबृद्ध सक्षम भविष्य को ले जाने में सफल होगा इसका तात्पर्य कदापि नही की जो अन्य धर्मावलंबी समाज है उसके साथ कोई भेद भाव रखा जाय यहां सिर्फ यह आवश्यक है कि हिन्दू संगठित मजबूत होगा तो दूसरे समाज के साथ भी बेहतर समन्वय सामंजस्य कायम कर एक बाहुआयमी सशक्त राष्ट्र के साथ जीवेत जाग्रत युग उत्क्रर्ष की तरफ दृढता से आगे बढ़ सकते है जिसके लिये सर्वभाव समरस मानवीय मूल्य आधारित समाज की जागरूकता आवश्यकता जिसे सत्य सनातन का सिद्धांत ही संपूर्णता प्रदान करने में सक्षम है।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीतांम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश



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1 Comments

Sushi saxena

24-Nov-2022 03:16 PM

बहुत खूब

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